ग़ज़ल - अब तो दुआओं से भी इलाज नहीं होता

अब तो दुआओं से भी इलाज नहीं होता
कल की बात ही और थी, आज नहीं होता

क़लम के बूते करता है इबादत को,
शायर, क़ौम का मोहताज नहीं होता

तरस खा अब्र, बच्चों की शक्ल देख!
आजकल उन खेतों में अनाज नहीं होता
(अब्र = बादल)

करके जफ़ा, उमीद वफ़ा की करते हो?
यार, ऐसा तो कोई रिवाज नहीं होता

हमसे पूछो, असर क्या है इश्क़ का?
काम नहीं होता कोई काज नहीं होता

नेकी भी करो तो उठेंगी उँगलियाँ
किसी का हमदर्द समाज नहीं होता

तुम थे जबतक, ख़ुश रहता था दिल
अब कभी दिल ख़ुशमिज़ाज नहीं होता

बड़ी कोशिश की 'ज़ैफ़' चारा-ए-ग़म की
कल की बात ही और थी, आज नहीं होता

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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