ग़ज़ल - इक बुरी लत हो गयी है

इक बुरी लत हो गयी है
तेरी आदत हो गयी है

नींद किसको आएगी अब?
जब मुहब्बत हो गयी है

इश्क़ करवट ले रहा है,
इक शरारत हो गयी है

शायरी जो मैंने लिक्खी,
प्यार का ख़त हो गयी है

तुम भी चुप हो मैं भी चुप हूँ,
एक मुद्दत हो गयी है

यूँ ख़ुदी से लड़ रहा हूँ,
ज्यूँ बग़ावत हो गयी है

बिन बताये जा रहे हो!
इतनी नफ़रत हो गयी है?

मैंने तो उल्फ़त करी थी,
पर इबादत हो गयी है

पास मेरे, आ गईं तुम,
थोड़ी राहत हो गयी है

'ज़ैफ़', मेरा हाल देखो!
कैसी ये गत हो गयी है

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

Comments