तुम्हारे नाम पे

बिताना चाहता हूँ तुम्हारे साथ कुछ पल फ़ुर्सत भरे
तुम्हारे नाम पे लिखना चाहता हूँ एक ताज़ा ग़ज़ल
उभारना चाहता हूँ तुमको, तुम्हारी ही स्मृतियों से
जिनमें तुम अक्सर
खो जाया करती हो बात करते-करते|

तुम्हारे एक स्पर्श से पिघल जाना चाहता है दिल
तुम्हारी साँसों से महक जाना चाहती हैं फ़िज़ाएँ
तुम्हारी समंदर आँखों में
डूबकर
देखना चाहता हूँ ज़िंदगी का सार,

तुम्हारी मखमली बाँहों में सिमटना चाहता हूँ थोड़ी देर
समेट लेना चाहता हूँ तुम्हारा सारा दुख,
चुरा लेना चाहता हूँ तुम्हारी पलकों के आंसू
जिन्हें बहाया करती हो तुम
अपने सूनेपन में, अक्सर|

मैं भर देना चाहता हूँ तमाम ख़ुशियाँ तुम्हारे दामन में
और बता देना चाहता हूँ तुम्हें
कि मेरे लिए,
तुमसे ख़ूबसूरत और कोई ग़ज़ल नहीं

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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