रोटियाँ जल गईं

शहर-भर की लाल बत्तियाँ जल गईं
ख़बर उड़ी है कि बस्तियाँ जल गईं

'दहेज-हत्या-केस' नोटों से हुए बंद,
क्या पता कितनी बेटियाँ जल गईं?

दिल दहकने लगा दुख सहते-सहते,
दिल को छुआ तो उँगलियाँ जल गईं

कितने जवाँ हौसलों का टूट गया दम,
कितनी तमन्नाओं की अर्थियाँ जल गईं

कुछ तो साज़िश ज़रूर माँझी की है,
संमदर में कैसे कश्तियाँ जल गईं?

बहुत आती है माँ की याद, 'ज़ैफ़'
आज फिर से ये रोटियाँ जल गईं

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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