ग़ज़ल - काम छीना मुफ़्लिसी ने

काम छीना मुफ़्लिसी ने और फिर ये नाम छीना
हम ग़रीबों के सरों से आज सारा बाम* छीना
 (बाम = छत)

कुछ बहस सी हो गयी थी आज मेरी साक़िया से
मन में उसके क्या समाई? हाथ ही से जाम छीना

मंथरा के ही कपट ने, मारी ममता कैकई की
एक माँ की ज़िद ने आख़िर दूसरी से 'राम' छीना

यूँ अलग होने से माना प्यार कम होता नहीं, पर
क्या वजह थी ऐ ख़ुदा जो राधिका से श्याम छीना?

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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