नज़्म - दिल को आज भी ये गुमाँ है

ज़िंदगी ने आज फिर उसी राह पे
ला खड़ा किया है
जहाँ से कभी
अलग हुए थे हम-तुम

तुम्हें याद हो न याद हो,
मुझे याद है-
वो मेरे काँधे पे तुम्हारा सर रख देना,
वो फ़र्दा के हसीं ख़्वाब की बातें,
वो तुम्हारे माथे को मेरा बेबाकी से चूम लेना,
वो हाथों में हाथ लिए चलते जाना दूर तक..

शायद दिल को आज भी ये गुमाँ है-
उसी राह की
उसी मोड़ पर,
भूले-भटके ही सही
तुमसे फिर मुलाक़ात हो जाये
कुछ देर ही सही, बात हो जाये

दिल को आज भी ये गुमाँ* है

(*गुमाँ - doubt)


© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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