नज़्म - सुनो, ज़ेबा!

सुनो, ज़ेबा!
दिल दुख रहा है आज बहुत..

नहीं नहीं कोई खास बात नहीं,
तुम्हें परेशान करने का इरादा भी नहीं..
भूली-बिसरी यादें दुहराऊं,
क्या फ़ायदा?
यादें तो कसक बनकर
कलेजे में ही फँस गईं हैं जैसे..

तुमसे वो पहली मुलाक़ात थी
और आज का ये दिन है,
तुम्हारे लिए मेरी चाहत ज़रा भी कम नहीं हुई..

हाँ, जानता हूँ
तुम किसी और की हो
और ये फ़ालतू की बक़वास
अब कोई मायने नहीं रखती
पर क्या करूँ, ज़ेबा!
दिल दुख रहा है आज बहुत..

लंबा अरसा हो गया है बात किये
रस्ते कट चुके हैं दोंनो के
और ऐसा भी नहीं कि
फिर किसी मोड़ पर
आ मिलें इत्तेफ़ाक़न..

तुम काफ़ी पीछे छूट गयी हो
मैं भी बहुत दूर चला आया हूँ
फिर भी..
नामुराद उम्मीद क़ायम है
इसी बात का मुझे ग़म है-
मुहब्बत कम भी नहीं होती
उम्मीद ख़तम भी नहीं होती

सुनो, ज़ेबा!
दिल दुख रहा है आज बहुत..

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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