वो बचपन के दिन याद आते हैं



जो तुमने प्यार लुटाया बाबा! उसका कोई मेल नहीं।
ख़ुशियों की क़ुरबानी देना कोई मामूली खेल नहीं।
    जब भी तुमको याद करूँ, ये नीर छलक-से जाते हैं।
    तुम्हारे साथ गुज़ारे वो बचपन के दिन याद आते हैं।

मैं जब भी रस्ता भूल गया हूँ, तुमने राह दिखलाई है।
गर मुझमें कुछ अच्छाई है तो तुमने ही सिखलाई है।
    जिस्मो-जाँ ये मेरे, बस तुमको 'आदर्श' बताते हैं।
    तुम्हारे साथ गुज़ारे वो बचपन के दिन याद आते हैं।

तुमने हमको जनम दिया, तुम्हीं ने जान बक्शी है,
तुमने अपना अंश बनाकर नई पहचान बक्शी है,
    ईश्वर-अल्लाह-वाहे-गुरु भी बाद तुम्हारे आते हैं।
    तुम्हारे साथ गुज़ारे वो बचपन के दिन याद आते हैं।

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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