नज़्म - उस वक़्त तुम्हें याद आएगा

जिस वक़्त तुमसे, ऐ जानां! सब साथ छुड़ा जायें
बीच राह में लाकर तुमसे हाथ छुड़ा जायें

तुमको ये दुनिया जब खाली-सी लगने लग जाये,
जब ये ज़ालिम तन्हाई गाली-सी लगने लग जाये

मेरी ज़िंदगी क्यों बिखरी है, उस वक़्त तुम्हें याद आएगा
मुझपे क्या क्या गुज़री है, उस वक़्त तुम्हें याद आएगा

जब अश्क से भीगे बिस्तर को, नाख़ून कुरेदने लग जाएँ
हाँ दर्द के तीखे भाले जब कलेजा छेदने लग जाएँ

जब आधी रात, ख़ाब से उठकर, कंपकंपाने लग जाओ
जब तकिये से रोने की आवाज़ दबाने लग जाओ

मेरी हालत कैसी बिगड़ी है, उस वक़्त तुम्हें याद आएगा
मुझपे क्या क्या गुज़री है, उस वक़्त तुम्हें याद आएगा

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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