नज़्म - तुम पर जीवन भर मरना है
दिल से लिपटी ही रहती है ये धड़कन जिस तरह,
मेरे तन की रग-रग में इस क़दर बसी हो तुम
हर वक़्त मुझे, हर बात पर, वास्ता तुम्हीं से है,
मुहब्बत में उट्ठे जज़्बात की ख़ुशी हो तुम
कभी मेरे तुम्हारे बीच में आ सकता कोई रिवाज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
तुम्हारे चंचल नैनों में, भोली-सी शरारत बसा करे,
तुममें गज़ब नज़ाकत है वो भी सादगी के संग
मैं तो यूँ ही काग़ज़ पर लफ़्ज़ों को पिरो-सा देता हूँ,
पर तुम्हीं चूमके भरती हो, मेरी शायरी में रंग
तुम को भर लूँ बाहों में, अब दुनिया की कोई लाज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
जो दो रूहों को एक कर दे, मुहब्बत उसी का नाम है,
तुम भी मुझपे मरती रहीं, मैं भी तुम पर लुटा किया
दिलों में जो सुकूँ सा भर दे, इबादत उसी का नाम है
तुमने भी मुझे वफ़ा सौंपी, मैंने भी तुमको ख़ुदा किया
तुम्हारे सिवा अब दुनिया में, किसी का मैं मोहताज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'
मेरे तन की रग-रग में इस क़दर बसी हो तुम
हर वक़्त मुझे, हर बात पर, वास्ता तुम्हीं से है,
मुहब्बत में उट्ठे जज़्बात की ख़ुशी हो तुम
कभी मेरे तुम्हारे बीच में आ सकता कोई रिवाज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
तुम्हारे चंचल नैनों में, भोली-सी शरारत बसा करे,
तुममें गज़ब नज़ाकत है वो भी सादगी के संग
मैं तो यूँ ही काग़ज़ पर लफ़्ज़ों को पिरो-सा देता हूँ,
पर तुम्हीं चूमके भरती हो, मेरी शायरी में रंग
तुम को भर लूँ बाहों में, अब दुनिया की कोई लाज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
जो दो रूहों को एक कर दे, मुहब्बत उसी का नाम है,
तुम भी मुझपे मरती रहीं, मैं भी तुम पर लुटा किया
दिलों में जो सुकूँ सा भर दे, इबादत उसी का नाम है
तुमने भी मुझे वफ़ा सौंपी, मैंने भी तुमको ख़ुदा किया
तुम्हारे सिवा अब दुनिया में, किसी का मैं मोहताज नहीं
तुम पर जीवन भर मरना है, केवल आज ही आज नहीं
© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'
Comments