मेरे अब्बू मुझको लौट दो

(पिता के गुज़र जाने पर एक लड़की की आपबीती)
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याद में अब्बू की, ये दुनिया सूनी-सूनी लगती है
दर्द से बोझल इस दिल में हरदम आग सुलगती है
सूने कमरे में चुप-छुपकर मैय्या मेरी रोती है
रात-भर उसके नैनों से आँसू की बरखा होती है

माँ को मेरी, हे प्रभु, कोई सुबह ख़ुशी की दिलवा दो
मेरे अब्बू मुझको लौटा दो, मेरे अब्बू मुझको लौटा दो

टूटे दरवाजों से अब भी सर्द हवाएँ आती हैं
दिल की सारी उम्मीदें इक पल में ख़ूँ हो जाती हैं
रिसती छत से कमरे में बारिश का पानी भरता है
फिर भी घर का मालिक रोज़ नए तक़ाज़े करता है

हम ग़रीबों को जीने की, आस प्रभु तुम दिखला दो
मेरे अब्बू मुझको लौटा दो, मेरे अब्बू मुझको लौटा दो

भैया भी मेरा दुख में अब तो अक्सर खोया रहता है
नित दीदी की आंखों का काजल रोते-रोते बहता है
दादी का तो जैसे सारा जीवन ही है उजड़ गया
बेटा खोने के सदमे में, जीवन से जी उखड़ गया

उन बूढ़ी साँसों तक फिर प्राण प्रभु तुम पहुँचा दो
मेरे अब्बू मुझको लौटा दो, मेरे अब्बू मुझको लौटा दो
क्या कहूँ मैं किस क़दर इस घर की रोटी चलती है?
खाली बर्तन देखकर सीने से चीख निकलती है

जीवन से मैं रूठ गई, मर जाने को जी करता है
चैन के इक लम्हे को मन सौ-सौ आहें भरता है
मन को मेरे हे प्रभु, कुछ तो सुकूँ कक ज़रिया दो
मेरे अब्बू मुझको लौटा दो, मेरे अब्बू मुझको लौटा दो

शिकवा किसी से क्या करूँ, बदनसीबी मैंने पाई है
जिनको अपना समझा था, उन्हीं ने चोट लगाई है
सीने से लिपटकर अब्बू के, जी भर के रोना चाहती हूँ
इक बार उनकी गोद में सर रखके सोना चाहती हूँ

हक़ीक़त न सही प्रभु, ख़्वाबों में ही मिलवा दो
मेरे अब्बू मुझको लौटा दो, मेरे अब्बू मुझको लौटा दो

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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