ग़ज़ल - प्यार की ख़ातिर

एक फ़रियाद कर रहा हूँ, प्यार की ख़ातिर
तुझे ही याद कर रहा हूँ, प्यार की ख़ातिर

है ज़िंदगी बड़ी काम की चीज़, मगर मैं,
इसको बर्बाद कर रहा हूँ, प्यार की ख़ातिर

ज़िंदगी-भर के गुनाहों का अफ़सोस,
मौत के बाद कर रहा हूँ, प्यार की ख़ातिर

जिसने मुझको सिर्फ़ दुख ही दुख दिए,
उसी को शाद* कर रहा हूँ, प्यार की ख़ातिर
(* प्रसन्न)

कभी सादगी पसंद मुझे थी 'ज़ैफ़', पर अब
फ़ितने-फ़साद कर रहा हूँ, प्यार को ख़ातिर

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

Comments