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जा ही रहे हो तो

जा ही रहे हो तो बेशक जाओ, रोकूंगा नहीं न दरख़्वास्त ही करूँगा कि थोड़ी देर ठहरो! फ़ैसला तुम्हारा है, दख़ल नहीं दूँगा, जब रिश्तों में खालीपन आ जाये मुहब्बत की मिठास फीकी पड़ जाये तो यही बेहतर है कि दो अलग रास्ते चुन लिए जायें, कि फीके रिश्तों में कड़वाहट जल्द पनपती है और कड़वाहट में नफ़रतें.. जा ही रहे हो तो बेशक जाओ, टोकूंगा नहीं न इस बात का दिलासा दूँगा कि सब ठीक हो जाएगा वैसे भी ये सब कहने की बातें हैं जो रिश्ते में बंधकर ठीक न हुआ, वो रिश्ते से अलग होकर क्या ख़ाक ठीक होगा? जो फ़ैसला तुमने लिया, ठीक लिया, तुम न लेतीं तो शायद मैं ले लेता एक दिन पर एक बात तुम्हारी तब से काटे जा रही है- "हो सके तो मुझको भूल जाना!" जा ही रहे हो तो बेशक जाओ, डाटूँगा नहीं न तुमसे लड़ूँगा ही कि ऐसा क्यों बोल दिया? लेकिन तुमको याद न करूँ ये मेरे बस में नहीं, एक यही काम तो है जो ढंग से आता है मुझे इस काम पे तो पूरा हक़ है मेरा.. मुझसे ये हक़ न छीनो, जाते-जाते! © यमित पुनेठा ' ज़ैफ़'