ये बचपन

ये ठंडे फ़ुटपाथ पर जीते हुए लावारिस बच्चे,
ये चीथड़ों से जिस्म ढकने की नाकाम कोशिश!
ये हर मुसाफ़िर का हसरत से मुँह ताकना,
ये गिरे निवालों को लपकने की नाकाम कोशिश! 

ये शामो-सहर दौड़-भाग, एक रोटी के लिए,
ये धूप में दिन-भर बोझ ढोता हुआ बचपन!
ये मासूम नम आँखों से फ़लक को देखना,
ये चीखता हुआ बचपन, ये रोता हुआ बचपन!

ये बचपन कि जिसकी देख-रेख को कोई नहीं,
ये बचपन जिसका फ़र्दा ही नहीं, माज़ी ही नहीं।
ये बचपन जिसमें ताक़त है मौत से लड़ने की,
ये बचपन कि उमीद छोड़ने को राज़ी ही नहीं।

(फ़र्दा - tomorrow, माज़ी - yesterday)

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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