ग़ज़ल - हूँ चिराग़े-शिकस्ता, बुझा दो मुझे


मैं बुरा हूँ, बुरा हूँ, सज़ा दो मुझे!
थोड़ा तो जीने लायक़ बना दो मुझे!

शे'र सुनने के क़ाइल हो तो बोल दो,
वरना इस बज़्म ही से उठा दो मुझे!
 (बज़्म = महफ़िल)

बस मुहब्बत की है आपसे और क्या
हो सज़ा जो भी मेरी सुना दो मुझे!

'याद' हूँ मैं अगर तो सजाकर रखो!
'भूल' हूँ मैं अगर तो भुला दो मुझे!

मेरी तो लौ भी अब 'ज़ैफ़' धुंधला गई
हूँ चिराग़े-शिकस्ता, बुझा दो मुझे!

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

Comments