नज़्म - वो शख़्स मुझको मिल गया


दो दिलों ने एक होने का किया है फ़ैसला,
अब हमारे दरमियाँ कोई भरम होगा नहीं।
मैं तुझी पे वार दूँ जो कुछ भी मेरे पास है,
इक दफ़ा बस बोल दे, ये प्यार कम होगा नहीं।

जो उजाला चाहिए था ज़िंदगी के वास्ते,
वो तिरी सूरत की मीठी धूप में मुझको मिला।
मैं जिसे भी ढूँढता था हर चमन में, बाग़ में,
वो महकता फूल तेरे रूप में मुझको मिला।

आज सबके सामने, करता हूँ इज़हारे-वफ़ा,
हाँ तिरी चाहत में मेरी जाँ गयी औ' दिल गया,
ज़िंदगी से सच कहूँ तो अब गिला मुझको नहीं,
चाहता था मैं जिसे वो शख़्स मुझको मिल गया।

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

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