दो-मुखी नज़्म


सारे रिश्ते देंगे घात
प्यारे मान तू मेरी बात

जीवन पलटा, जैसे बाज़ी,
हारे सबकुछ, यूँ थी मात

हम थे लिखते खरी-खरी,
हमारे कटे, क्यूँकर हात*?

(* हाथ )
नैन तरसें, सुबह-ओ-शाम,
धारे बरसें, रात की रात

कभी ये थे कितने गहरे,
हमारे तुमसे ताल्लुक़ात

फेरे नसीब, वक़्त जिसका,
सँवारे कौन उसके हालात? 

मानता नहीं मज़हब, 'ज़ैफ़'
प्यारे! पूछ न उसकी ज़ात

(*अब पूरी नज़्म को दोबारा पढ़ें पर इस बार right से left की तरफ़*)

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

Comments